Product Code :CSG 456
Author : Kapildev Narayan
ISBN : 9789381484326
Bound : Hard Cover
Publishing Date : 2025
Publisher : Chaukhamba Surbharati Prakashan
Pages : 1030
Language : Sanskrit Text with Hindi Translation
Length: 23 cm
Width : 15 cm
Height : 7 cm
Weight : 1370 gm
Availability : 73
श्रीदेवीरहस्यम् 2 भागो में (Shri Devi Rahasyam Set Of 2 Vols.) तन्त्रशास्त्र मनुष्य को सुख की प्राप्ति और दुःख की निवृत्ति का मार्ग दिखाता है। भारतीय दर्शन के सभी विषय तन्त्रशास्त्र में वर्णित हैं। यह गम्भीर, स्पष्ट तथा उच्च चिन्तन का भण्डार है। मनुष्य के मनोभाव और आत्मकल्याण के सभी क्षेत्रों से सम्बन्धित व्यावहारिक प्रयोगों के साधन इसमें वर्णित हैं। महर्षि अरविन्द के अनुसार ‘तन्त्र व्यक्तित्व के विकास में निहित विभिन्न प्रकार के वैशिष्ट्य तथा पद्धतियों का एकीभाव है।’ यह तन्त्रशास्त्र आगम, यामल एवं तन्त्र के रूप में तीन भागों में विभक्त है, जैसा कि कहा भी गया है-तन्त्रशास्त्रं प्रधानं त्रिधा विभक्तं आगमयामलतन्त्रभेदतः।आगम के सम्बन्ध में कहा गया है कि-
आगतं पञ्चवक्त्रात्तु गतं च गिरिजानने।मतं च वासुदेवस्य तस्मादागममुच्यते।।
आशय यह है कि आगमशास्त्र शिव के मुख से आगत, गिरिजा के मुख में गत एवं विष्णु द्वारा समर्थित होने के कारण ही ‘आगम’ नाम से अभिहित किया जाता है तन्त्रशास्त्र में यामल अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माने गये हैं। यह स्वयं शिव शिवारूप युगल देवताओं द्वारा कथित होने के अधिक उपादेय माना जाता है। यामल साहित्य की शृङ्खला अत्यन्त विशाल है। उसमें भी रुद्रयामल की विशिष्टता सर्वोपरि है। ब्रह्मयामल और विष्णुयामल के बाद उपदिष्ट होने के कारण इसे ‘उत्तरतन्त्र’ नाम से अभिहित किया जाता है। रुद्रयामल के नाम से उद्धृत ग्रन्थों और ग्रन्थांशों की संख्या अगणित है। उन्हीं में से संगृहीत यह ‘देवीरहस्य’ नामक एक अद्भुत ग्रन्थरत्न भी है।
एसियाटिक सोसाइटी बंगाल के सूचीपत्र के अनुसार देवीरहस्य रुद्रयामल के अन्तर्गत ६० पटलों में वर्णित है। यह कौल सम्प्रदाय का ग्रन्थ है। पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध के रूप में इसके दो भाग हैं। पूर्वार्द्ध के पच्चीस पटलों में शाक्त मत के मुख्य-मुख्य तत्त्वों पर प्रकाश डाला गया है एवं उत्तरार्द्ध के पैंतीस पटलों में विभिन्न देवियों की पूजाविधियों का सविधि वर्णन है। देवीरहस्य में नित्य कृत्य-प्रदीपन और क्रमसूत्र – दोनों का वर्णन यामलीय उपासना की सर्वांगीण दृष्टि से किया गया है। नित्य कृत्य में ब्राह्म मुहूर्त में शय्यात्याग के पश्चात् करणीय सभी कर्मों का वर्णन व्यवस्थित रूप में किया गया है। शय्या-त्याग के पश्चात् से लेकर शयनकाल तक की पूरी प्रक्रिया एवं दिनचर्याओं का क्रम निर्दिष्ट करते हुये उनका साङ्गोपाङ्ग विवेचन इसमें किया गया है। उपासना की विविधता को ध्यान में रखकर क्रमसूत्रों में पञ्चाङ्ग का कथन अति महत्त्वपूर्ण है।
पञ्चाङ्ग में उपासना के पाँच अङ्गों का वर्णन होता है। उनमें पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्तोत्र का सङ्कलन होता है। प्राचीन ग्रन्थों में इन पाँच अङ्गों को देवता का प्रमुख अङ्ग माना गया है। कहा भी है-
पटलं देवतागात्रं पद्धतिर्देवताशिरः।
कवचं देवतानेत्रे सहस्त्रारं मुखं स्मृतम्।
स्तोत्रं देवीरसा प्रोक्ता पञ्चाङ्गमिदमीरितम्ते ।।
अर्थात् पटल देवता का शरीर है, पद्धति शिर है, कवच नेत्र है, सहस्रनाम मुख है एवं स्तोत्र जिह्वा है। इस ग्रन्थ के पूर्वार्द्ध के पच्चीस पटलों में दीक्षा, देवीमन्त्र, शिवमन्त्र, विष्णुमन्त्र, उत्कीलन, सञ्जीवन, शापमोचन, पारायण, सम्पुट, प्रारम्भिक मन्त्राभ्यास, बलिदान, यन्त्र, यन्त्र-धारणविधि, मन्त्र के ऋषि, श्मशान-साधना, मद्यपान की प्रक्रिया, शक्तिवन्दना, मद्य का शुद्धीकरण, शक्तिशोधन, विविध प्रकार की माला, यन्त्र-शुद्धिकरण विषयों का विस्तृत विवेचन किया गया है। उत्तरार्द्ध के पैतीस पटलों में गणेश, सूर्य, लक्ष्मी, नारायण, दुर्गा के पञ्चाङ्ग अर्थात् पटल, पद्धति, कवच, सहस्रनाम एवं स्तोत्र का नियपण किया गया है। ग्रन्थभाग के पश्चात् परिशिष्ट भाग में ज्वालामुखी, शारिका, महाराज्ञी और बाला त्रिपुरा के पञ्चाङ्गों का निरूपण किया गया है।
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